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नायिका, खलनायिका और अब 'मां' हर किरदार में सहज है फिल्म एक्ट्रेस Kajol, कहा – 34 साल का सफ़र...

34 सालों से अभिनय की दुनिया में अपनी दमदार मौजूदगी बनाए रखने वाली काजोल (Kajol) अब एक बिल्कुल नए अवतार में पर्दे पर लौटी हैं. अपनी नई फिल्म ‘मां’ (Maa) में वह एक ऐसी मां की भूमिका निभा रही हैं...

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Heroine Villain and Now a Maa Actress Kajol Effortlessly Embraces Every Role Says A Journey of 34 Years
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34 सालों से अभिनय की दुनिया में अपनी दमदार मौजूदगी बनाए रखने वाली काजोल (Kajol) अब एक बिल्कुल नए अवतार में पर्दे पर लौटी हैं. अपनी नई फिल्म ‘मां’ (Maa) में वह एक ऐसी मां की भूमिका निभा रही हैं, जो अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है — यहां तक कि एक राक्षसी ताकत से भी भिड़ जाती है. पहली बार हॉरर और एक्शन जॉनर को एक्सप्लोर कर रहीं काजोल ने इस फिल्म के जरिए खुद को एक कलाकार के तौर पर फिर से चुनौती दी है. इस खास बातचीत में काजोल ने ‘मां’ के अनुभव से लेकर अपने 33 साल लंबे फिल्मी सफर, बदलते सिनेमाई दौर, स्टार किड्स की ट्रोलिंग, सोशल मीडिया के प्रभाव और मां तनुजा से मिली सीखों तक — कई मुद्दों पर दिल खोलकर बात की. आइए जानते हैं क्या कहा काजोल ने:

kajol film maa

इससे पहले दर्शकों ने आपको भावनात्मक किरदारों में देखा है, लेकिन ‘मां’ में आपने हॉरर की दुनिया में कदम रखा है. क्या इस जॉनर ने आपको बतौर कलाकार कुछ नया खोजने का मौका दिया?

काफी मजेदार रहा. हालाँकि एक्टिंग के लिहाज से कुछ बहुत अलग नहीं है लेकिन जो जॉनर है, जो माहौल है, जिस तरह से कहानी लिखी गई है कि जो राक्षस है जिससे उस मां को लड़ना है, वह बहुत अलग है. मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज एक्शन था. फिल्म में काफी एक्शन है और मैंने पहली बार ऐसा कुछ किया है तो फिजिकली बहुत चैलेजिंग था. इसके अलावा वीएफएक्स में शूट करना अलग ही कहानी होती है. वह थोड़ा मुश्किल और कंफ्यूजिंग होता है क्योंकि इसे शूट करने का तरीका अलग होता है.

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आप खुद भी एक मां हैं, क्या इस किरदार को निभाते वक्त आपने मां होने की उस आंतरिक ताकत को और गहराई से महसूस किया?

बिल्कुल, मुझे लगता है कि मां बनने के साथ आपमें एक अंदरूनी ताकत आ जाती है, जिससे आप सारी चुनौतियां मैनेज कर लेते हो. जब औरतें मां बनती हैं तो इतना तनाव होता है कि वे सो भी नहीं पाती, फिर भी इतनी सारी चीजें मैनेज करनी होती हैं. इसके अलावा मदरहुड के लिए कोई खास रूल बुक नहीं है. आपकी मां ने 1-2 नुस्खे बताए होंगे, इसके बावजूद आप अपने बच्चे की हर जरूरत पूरी करती हैं, तो बिलकुल मां बनने के साथ एक अद्भुत- सी ताकत आ जाती है. फिर जब अपने बच्चे की सुरक्षा की बात आती है, तब आप कुछ भी कर जाती है.

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फिल्म 'गुप्त' में आपने एक खलनायिका की भूमिका निभाकर अपने करियर में एक साहसिक मोड़ लिया था. क्या आज के दर्शकों और इंडस्ट्री में ऐसे रिस्की लेकिन दमदार रोल्स को चुनना उतना ही संभव है?

वह अलग च्वाइस थी. शायद उस वक्त लोगों को लगता था कि अगर हीरोइन के बजाय खलनायिका करेगी तो वह नहीं चलेगा. मैं हर तरह के रोल के साथ सहज थी. मेरी राय, मेरे लिए सबसे ज्यादा मायने रखती है. मेरी मां ने सबसे पहले मुझे यही बांत सिखाई है कि अगर आप स्वयं पर हँस सकते हैं तो किसी और के हंसने से आपको कभी बुरा नहीं लगेगा. अगर आप स्वयं को सही तरीके से देख सकते हैं तो कोई आपकी छवि गलत नहीं दिखा सकता है. मुझे उस वक्त भी पता था कि मैं अच्छा ही काम करूंगी.

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आप इंडस्ट्री में तीन दशकों से भी ज़्यादा वक्त से सक्रिय हैं. इतने लंबे सफर के बाद भी कैमरे और सेट्स के प्रति वही जुनून कैसे बरकरार है? और इस दौरान आपकी किरदार चुनने की सोच में कैसे बदलाव आया है?

मेरे करियर को 34 साल हो गए हैं, लेकिन सेट और कैमरे से मोहब्बत आज भी उतनी ही गहरी है. मुझे याद है, जब मेरी पहली फिल्म का मुहूर्त हुआ था, तब मेरे डैडी (शोमू मुखर्जी) ने कहा था—‘सोच लो, एक बार मेकअप लग गया तो उतरेगा नहीं ’ उस वक्त मैं बड़ी आत्मविश्वास से बोली थी, ‘अगर मन नहीं हुआ तो कल छोड़ दूंगी.’ लेकिन देखिए, आज 34 साल बाद भी वही ‘चूना’ मेरे चेहरे पर है और मैं आज भी कैमरे के सामने खड़ी हूँ. मुझे लगता है कि इस लंबे सफर में सबसे अहम चीज यह रही कि एक अभिनेता को खुद को लगातार रीइवेंट करते रहना चाहिए. अगर आप खुद को चौंका नहीं सकते, तो दर्शकों को क्या ही चौंकाएंगे? यही सोचकर मैंने अलग-अलग तरह के किरदार और जॉनर चुने, जो मुझे रचनात्मक रूप से चुनौती भी दें और निखारें भी.

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आपके नजरिए से मौजूदा दौर में अभिनेत्री होने के क्या फायदे हैं, जो पहले नहीं हुआ करते थे?

इस दौर में आप फेल हो सकते हैं, लेकिन फिर भी वहां आपके करियर का अंत नहीं होगा. अभिनय के अलावा आप 100 चीजें और कर सकते हैं. पहले ऐसा नहीं था. तब एक्टर बन गए तो और कुछ नहीं कर पाते थे. अगर सफल नहीं होते थे तो जिंदगी भर असफलता खाते में रह जाती थी. आज एक फिल्म नहीं चली तो भी दस और चीजें भी कर सकते हैं.

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आपकी हालिया फिल्मों में महिला किरदार केंद्र में रहे हैं. क्या आपको लगता है कि आज की कहानियों में हीरो की पारंपरिक मौजूदगी उतनी ज़रूरी नहीं रह गई है?

नहीं, ऐसा नहीं है. अगर कहानी अच्छी नहीं होगी तो कोई भी पात्र कर लें, कुछ नहीं हो पाएगा. कोई भी फिल्म एक पात्र पर चल ही नहीं सकती है.

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आपकी मां तनुजा कई मायनों में बेहद प्रभावशाली रही हैं. क्या उनके व्यक्तित्व की कोई ऐसी खूबी है, जिसे आप हमेशा अपने अंदर लाना चाहती थीं लेकिन अब तक ला नहीं पाईं?

मेरी मां नौ-दस भाषाएं बोल सकती हैं. काश! मुझमें मां की ये खूबियां होतीं. अगर ऐसा होता तो मैं शायद आज और बेहतर कलाकार होती. मां का सेंस आफ ह्यूमर बहुत कमाल का है. वैसे इसमें मैं थोड़ी उनके जैसी हूँ. उनके बारे में कोई क्या कह रहा है, इससे उनको कुछ फर्क नहीं पड़ता है. मैं भी फिलहाल उसी राह पर हूँ.

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आपके बेटी न्यासा फिल्मी करियर को लेकर अपना रुख साफ रखती हैं. क्या बतौर युवा, आपने भी अपने सपनों और रास्तों को लेकर इतनी ही स्पष्टता महसूस की थी?

हां, मैं बहुत कान्फिडेंट थी. तब इंटरनेट मीडिया नहीं था कि मेरा वह व्यक्तित्व दिखाई देता. मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मुझे पता था. मैं बुद्धिमान लड़की रही हूँ. खूब पढ़ती थी, आज भी वह आदत है. इन चीजों से फर्क पड़ता है. जब आप अपनी बुद्धिमत्ता को छिपाने का प्रयास नहीं करते हैं तो उसकी चमक दिखती है. मुझसे कोई पंगा नहीं ले सकता था, खासकर बातों में. उम्मीद है कि मैंने भी न्यासा को इतना आत्मविश्वास दिया है.

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आज के दौर में सेलेब्रिटीज़ की निजी ज़िंदगी पर पैपरात्ज़ी की लगातार नज़र बनी रहती है. क्या यह बदला हुआ माहौल आपको असहज करता है?

उनका ये काम है कि हमारे पीछे आओ. हम जहां भी जा रहे है, देखो कि हम कहां जा रहे हैं, लेकिन मुझे इससे बहुत उलझन होती है और वह शायद मेरे चेहरे पर दिख जाता है. मगर मैं इस पर इतना ध्यान नहीं दे सकती हूँ. मेरी जिदगी में बहुत सारी चीजें करने के लिए हैं.

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सोशल मीडिया के इस दौर में स्टार किड्स को अपने माता-पिता की शोहरत की वजह से अकसर कैमरों की नज़र, लोगों की राय और ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है. एक मां के तौर पर आप अपने बच्चों को इससे कैसे संभालती हैं?

हम अपने बच्चों को पूरी तरह से प्रोटेक्ट नहीं कर सकते. हम उन्हें समझा ही सकते हैं कि बेटा, ये तुम्हारी गलती नहीं है. लोग जो भी बोल रहे हैं. उनकी बातोंपर ध्यान मत दो. इससे ज्यादा आप क्या ही प्रोटेक्ट कर सकते है क्योंकि आज के बच्चे सब कुछ देखते हैं. वे फोन फोन पर है, नेट पर हैं तो आप उन्हें समझा ही सकते है कि बेटा, यह आपकी जिंदगी नहीं है, बस एक हिस्सा है और यह थोड़े वक्त के लिए है. फिर खत्म हो जाएगा. आप अपनी ज़िंदगी के फैसले या अपनी पहचान को इन बातों से प्रभावित नहीं होने दे सकते.

आपको बता दें कि काजोल की फिल्म ‘माँ’ 27 जून, 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी. यह फिल्म विशाल फुरिया (Vishal Furia) द्वारा निर्देशित और अजय देवगन तथा ज्योति देशपांडे द्वारा निर्मित है. फिल्म में काजोल के अलावा रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता और खेरिन शर्मा भी हैं.

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